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महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिला को आत्म-सम्मान देना, उसे आत्मनिर्भर बनाना, उसके अस्तित्व की रक्षा करना.
यह सच है कि पहले की अपेक्षा समाज में जागरूकता आई है और लोगों की सोच भी बदली है. महिलाएं अब कमज़ोर नहीं बल्कि सशक्त हुई हैं. वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, हर चुनौती का सफलतापूर्वक सामना कर रही हैं, लेकिन सशक्तिकरण के लिए जो भी प्रयास किये जा रहे हैं वे अभी भी बहुत कम हैं. जब सामाजिक, पारिवारिक और वैचारिक, शैक्षिक बदलाव आएगा तभी शायद औरतों की समस्याएं कुछ कम हो पाएंगी.
कानून बना कर महिला सशक्तिकरण तब तक नहीं हो सकता जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन न आये या वे खुद अपने अंदर परिवर्तन ना लाएं. हमारे समाज में आर्थिक, सामाजिक, रीति-रिवाज़ और कई ऐसी बुराइयां हैं जो महिलाओं को कमज़ोर करती हैं. अनपढ़ स्त्रियों की बात छोड़ दें, पढ़ी लिखी महिलाएं भी अपने अधिकारों को लेकर सजग नहीं हैं. दहेज़, बाल विवाह, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएं आज भी हो रही हैं जिनपर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना आवश्यक है. प्रत्येक महिलाओं के लिए शिक्षा अनिवार्य करनी चाहिए. शिक्षित महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों, अपने आत्म-सम्मान की रक्षा कर सकती हैं.
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