Neeru
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रोज़ाना की तरह वह अपनी कार से शाम को ऑफिस से लौट रहा था. एक जगह रैड लाइट पर जैसे ही कार रुकी, एक छोटी सी बच्ची खिड़की पर आ कर एक मैगज़ीन दिखा कर बोली – ” भैया जी , खरीद लीजिये ना”. उसने इंकार में सर हिलाया. उस बच्ची ने पुनः आग्रह किया. पत्रिकाएं तो उसने नहीं लीं, लेकिन सिग्नल ग्रीन होने वाला था ,यह भाप कर उसने जल्दी से बीस रूपए का एक नोट उसकी तरफ बढ़ा कर उपेक्षा से कहा -” नहीं मैगज़ीन नहीं चाहिए. तुम ये पैसे रख लो”.बच्ची ने बिना पैसे लिए उसकी ओर देखा और कहा – “भईया जी, मुझे भीख नहीं चाहिए. मैं यह पत्रिकाएं बेचकर अपनी पढाई का खर्च जुटाती हूँ”. एक बार उस बच्ची ने उसकी ओर देखा और वहाँ से चली गयी.
उसका मन उस छोटी सी बच्ची के स्वाभिमान के समक्ष नतमस्तक हो गया.
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