Neeru
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अतिथि देवोभव यह उक्ति पुराने समय के लिए उप्युक्त थी ही,आज के संदर्भ में भी सर्वथा प्रासंगिक है.रिश्तों में स्वार्थ का बोलबाला दिनोदिन बढ़ता जा रहा है.आज अपना अमूल्य समय और धन गवां कर कोई किसी के पास यूं ही आना जाना,मिलना-जुलना नहीं चाहता.परन्तु यह भी सच है क़ि अतिथि के प्रति लगाव और स्वागत सत्कार हमारी भारतीय संस्कृति रही है. मेहमान नवाज़ी हमारे आपसी संबंधों को, हमारे प्रेम और विश्वास को मज़बूत बनती है. अतः यह कहना अनुचित होगा क़ि आज न तो आतिथ्य के प्रति लगाव रहा और नाही स्वागत सत्कार करने को भरपूर समय. समय और लगाव तो निकालने और बनाने से बनता है जो हमारी संस्कृति में आज भी रचा – बसा है. मेरे ख्याल से मेहमान नवाज़ी का स्वरुप न तो कभी बदला था न तोह कभी बदलेगा. यह तो हमारे पूर्वजों की धरोहर है जिसे हमें आगे बढ़ाते जाना है.
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