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प्राचीन काल मैं गुरुकुल शिक्षा प्रणाली से शिक्षा ग्रहण करके विद्यार्थियों मैं उच्च मानविये गुणों का विकास होता था.परन्तु समय के साथ उसमें परिवर्तन होना स्वाभिक था.कालांतर में ब्रिटिश शासनकाल में मेकाले शिक्षा प्रणाली लागू हुई परन्तु यह कहना कि मेकाले शिक्षा पध्हती ने हमें अपनी संस्कृति से काटा है,पूर्णत न्यायसगत नहीं प्रतीत होता.सच तो यह है कि सामाजिक उथल-पुथल ने समाज क़ी मान्यताओं का स्वरुप ही बदल दिया.आज जातिवाद,प्रांतवाद और सम्प्रदायवाद का उन्माद समाज को खोखला करता जा रहा है.सारे मूल्यों को तिलांजलि दे दी गई है और यूवा वर्ग का एकमात्र उदेश्य रह गया है,डिग्री हासिल करना आज तो डिग्रियां खरीदी व बेचीं जाने लगीं हैं ,जिनसे सम्बंधित घोटाले समाचारपत्रों में छाये रहतें हैं.दिशा विहीन छात्र-छात्राएं शिक्षा पर ध्यान देने के बजाय मोजमस्ती व गुनाह के रास्ते पर चल पड़े हैं.शिक्षक भी ऑंखें मूंदकर अपनी रोटी सेकने में व्यस्त हैं जब समाज कि व्यवस्था ही चरमरा गई हो तो शिक्षकों व छात्रों से ही नैतिकता कि अपेक्षा कियों की जाये?
यदि इस समस्या का कोई चमत्कारिक समाधान है तो वो है गाँधी नेहरु सरीखे पथ प्रदर्शक समाज से कुरूतियों को आमूल नस्ट कर इसे nai
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